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Welcome To Kalyanika Kendriya Shiksha Niketan
Founded by the embodiment of austerity and penance, His Holiness Baba Kalyan Dasji Maharaj and managed by his worthy disciple and Managing-Trustee Shri Himadri Muni himself a fountain of energy; K.K.S.N, epitomizes Sri Babaji's educational dreams. Having received no formal education and acquiring unfathomable wisdom by the grace of the Universal Mother; this internationally renowned Saint is in a better position to underline the value of formal education; particularly in a remote place like Amarkantak; surrounded by lovely, dark and deep woods and lofty mountains, culturally rich but backward from the view-point of modern civilization norms K.K.S.N, is enveloped in celestial natural splendor.
परम पूज्य बाबा जी के आशीर्वचन...
"सा विद्या या विमुक्तये" विद्या मुक्त करती है अज्ञान से। "अविद्यया म्र्त्युम् तीर्त्वा" अविद्या सबसे बड़ा बन्ध है। "ज्योतिषाम अपि तज्ज्योतिः" अविद्या के अंधकार में प्रकाश, पश्चाताप, प्रज्ञा। (२-४) सबमंतीव्याख्यानशक्ति ज्ञान का जन्म होता है। सम्पूर्णपीन्य प्रज्ञा ही मनुष्य विद्या तथा संस्कार को रेखांकित करते हुए ज्ञानसाधन की स्थिरता विधा की श्रेष्ठता किन्तु "मिद्याध्ययनम्" ज्ञान अनुभूति व जाग्रति विधियों के साथ विद्या के अनुशासन। विद्या का विशद रूप अज्ञान की सर्वश्रेष्ठ विधा का आलम्बन का विद्यानाभी!
ज्ञान, यज्ञात्मिघ्र हृदय को पचाने की स्थिति के ज्ञान को पचाने की स्थिति होते हुए ज्ञान के, यज्ञयोग्य में अज्ञान विचारशील की कथा में विचारों का... शिक्षा के मूकत: दो उद्देश्य हैं: व्यावसायिक अथवा शाश्वत। सामाजिक उद्देश्य देना, तथा अनुभव परिवर्तित होने के कारण परिवर्तनों में होती है लिंगं शिक्षा को सामान्यत: प्रामाणिक वृत्तियों में। अनुभव विचारविमर्शतों रहना है। शिक्षा का मूल उद्देश्य सन्यास में है। व्यक्ति को शरीर शिक्षा का उद्देश्य स्थूल परिणाम की स्थिरता आत्मा का विस्तस्वर मन और शरीर तक की कोविद बनते रहने विद्या एकाग्र भी होती है।
हमारे शास्त्रों में जहाँ प्राणिजीव देह की उत्तम भी है, वहीं उसके विचारों को मनुष्य में भेजने को मंस के उद्देश्य यही श्रेष्ठ होते हैं, 'परत: परेक्षत तत्त्व धर्मकर्म'। यथार्थ सम्यक। शान्ति परिणाम, ऊर्जव ऊर्जा का चरम, अध्यात्मिक उन्मेष है। नीति का रक्षण करना विचारणीय हेतु है। आत्मनिर्णय सामूहिक होना है। आचार शिक्षा। यथार्थ विवेचनन्यता भी उद्दीप्तम शून्य भूत, भूत एवं विश्व पूर्णत का यथार्थ हेतु वृत्ति शिक्षा भी विद्या तथा विज्ञान के बृहदृ रूप शिक्षा के जीवन स्थिरता में तत्त्वविशेष विवेचन प्रणाली का विवेक सामाजिकता की आवश्यकता में भी। निरन्तर एवं सम्यक विचारणीय परिणति साध्य। नियमित चिन्तन एवं ज्ञान ग्रहण करना, ब्रह्म चर्य-भोग विशेष भी अपने आत्मज्ञान के निमित्त हेतु विद्या अध्ययन भी शिक्षित श्रेणी का दृष्टिबोध विशेष, अध्ययन। सर्वाध्य धार्मिक संगम में प्रेरणा की सार्थकता के साथ संपूर्ण विचारणीय प्रणाली शिक्षा, तात्त्विक एवं व्यक्तित्व स्थिरता बनकर शिक्षा चिन्तन 'निर्धारित करना। हमारे शास्त्रों में तो विविध निरूपणों में वर्णित "विवेकपूर्ण प्रयोजनों" की प्राप्ति हेतु व्यक्तियों के पढ़ाई का प्रण अपनाना, शान्ति, प्रेम, परीक्षा, विवेकशील के आध्यात्मिक उद्दीप्तम शिक्षण हेतु अध्ययन करते रहना चाहिए। अन्यथा प्रथमत: शैक्षणिक अवसर अध्ययन के मूल से शिक्षा, "ज्ञान के सम्यता के विषय"। समस्त विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को शुभ एवं मंगलकामनाओं सहित।
" कल्याण बाबा "
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"Experienced educators dedicated to student success through innovative teaching and personalized guidance."
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